-प्रभुनाथ शुक्ल-
साहित्य साधना के लिए कम्प्युटर बाबा को प्रणाम कर योग मुद्रा में तल्लीन था। दिमाग में अनेका नेक विषय आ रहे थे, लेकिन किसी पर स्थायित्व नहीं मिल रहा था। इस दौरान धर्मपत्नी कई बार डोर को नाक कर चुकी थी, परंतु साहित्य साधना में लीन होने की वजह से मैं शून्य में खो गया था। जिसकी वजह से ब्रह्म सत्य जगत मित्थ्या की स्थिति बन गई थी। तभी धर्मपत्नी श्रीमती रचना बेलनवाली का रौंद्ररुप हमारी साधना को मानूसनी दस्तक के साथ भंग कर दिया। एक बार तो हमें ऐसे लगा कि जैसे कड़कती बिजली और बादलों की गड़गड़ाहट कमरे में घुस जाएगी। लेकिन तभी कमरा खोला तो हमारे होश उड़ गए। यह क्या! श्रीमती रचना बेलनवाली साक्षात दुर्गा स्वरुप में खड़ी थी और मैं उनके सामने नतमस्तक था। पत्नी का प्रचंड रुप देख मैं क्षमा याचना की मुद्रा में था। शांत हो जाओं, देवी शांत हो जाओ! क्षमा-क्षमा! लेकिन गर्जना थमने का नाम नहीं ले रही थी। काफी मनौवल के बाद गर्जना, व्यंजना और लक्षणा शांत होने के बाद मुझ पर पिल पड़ी।
अजी! सुनते हो, जी देवि! बोलिए। दूधवाला आया था सुबह-सुबह धमकी देकर गया है, उसका तीन महींने का बकाया है। कल से से दूध बंद और चाय को भी तरसोंगे। नगर निगम से जलकर वालों ने नोटिस भेजा है उसका छह माह का बकाया है। मकान मालिक ने भी कमरा छोड़ने का अल्टीमेटम दिया है। बच्चे स्कूल से लौट आएं हैं। टीचर ने कहा है कि क्लास टेस्टिंग का वक्त बीत गया। मम्मी-पापा से बोलों कल पचास हजार के साथ सारे डाकूमेंट लेकर आएं और एडमिशन करा लें, वरना कल से स्कूलमत आना। बिजली वाले ने बिल भुगतान न होने पर कनेक्शन काट दिया है। जनाब अब अंधेरे में साहित्य साधना करनी होगी। समझे, पूरे लाख का बजट है और जेब में धेला भी नहीं है। हूं! आएं हैं बड़े साहित्यकार बनने। सौ में से अस्सी जगह से रचनाएं संपादक सखेद लौटा देते हैं, उपर से मुफत में धन्यवाद और सहयोग बनाए रखने की अपील भी करते हैं। मानसूनी बारिश में कभी कभार सौ-दौ सौ रुपया मिल गया तो मिल गया। कोई बड़ा साहित्यकर तो तुम्हारी फेसबुक वाल पर घास तक नहीं डालता। लाइक न कामेंट। लेकिन नोबेल पुरस्कार लेने में लगे हो। तुम्हारी साधनाम में घर का कचूमर निकल रहा है। मरणोपरांत भी नोबेल मिलने वाला नहीं है। बेलनवाली के प्रहार से नहाया मैं अंकिचन और स्तब्ध खड़ा था।
श्रीमती रचना बेलनवाली की चूड़िया बार-बार मुझ पर बेलन तानते हुए खनक रही थी। हमने सोचा इसी लय को क्यों न काव्य रचना का आधार बना डालें, लेकिन वह थमने वाली कहां थी। श्रीमान! आप तो पूरे निठल्ले हो। तुमसे भले तो दल्ले हैं जिनके नाम पर दलाल स्टीट बन गई है। देश बदल रहा है, लेकिन लल्लू लाल बदलने से रहे। दिन-रात कम्प्युटर बाबा के साथ बंद कमरे में साधना करते रहते हैं। मौसम का मिजाज देख बदलना सीखो। जमाना प्रयोगवादी है देखते नहीं। कभी जूता, थप्पड़ और तो और वल्र्डकप में अपन भले हार गए, लेकिन लल्ला के बल्ले ने कमाल कर दिया। अपन की गोवा टीम को देखो। मौसम सूखा देख मानसूनवालों के साथ हो लिए। पब्लिक जाए भाड़ में, उसकी कौन चिंता करता है। बेलनवाली ने अपना रुख थोड़ा नरम किया। बोली सजनवा। मेरी मनवा की मान जा। ई नोबल लेने की जिद छोड़। तुम भी उ गोवा वालों की नीति अपनाओ। बस! ई बेरोजगारी से बचने के लिए एक बड़ा पिलान है हमरा पास। नगर निगम से थोड़ा जुगाड़ भिड़ाओ। चैराहे पर उ खाली पड़ी जमीन पर पकौड़े की दुकान कर लो। मानसून का मौसम है, समय की नजाकत को देख इसकी शुवात कर लो। बस! दुकान का शुभारंभ पकौड़ा तलने का मंत्र देने वालों से करवा लो। फिर मीडिया वालों का कैमरे चमकेगा। एक न्यू आइडिया आएगा। अपनी बेगारी दूर हो जाएगी। बेलनवाली की बात जच गई। कहते हैं कि वक्त बदलते देर नहीं लगती। हमारी दुकान चल निकली। आज शहर के नामी गिरामी लोेग आते हैं। सोसायटी में मेरी अलग छबि बन गयी है। किट्टी पार्टी में बेलनवाली के बेलन का जलवा है। शहर के नामी गिरामी साहित्यकार चाय और पकौड़े का लुत्फ उठाने आते हैं। कल तक जो घास नहीं डाल रहे थे आज साहित्यकार पकौड़े वाले का बड़ा नाम है।
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